आज और अभी का : साहित्य,समाज और संस्कृति 🧿👣

आज और अभी का : साहित्य ,समाज और संस्कृति 🧿👣

साहित्य, समाज और संस्कृति' इन्हें इंसान सदियों से संभालता आया है। समय के साथ इनमें कई बदलाव होते गए। 'बदलाव' जो बदलते समय के साथ जरूरी भी होते हैं। हमें इन बदलते साहित्य, समाज और संस्कृति की ओर घृणा से नहीं बल्कि एक एक नयी उपजती विद्या या धारा की तरह देखना चाहिए। हर समय में कुछ ऐसी कमियां रही हैं, जिन्हें आने वाला समय पूरा करता गया। हर युग की कुछ ऐसी आकांक्षाएं बची रहीं, जो उस युग के समाप्ती के पश्चात पूरी हुई, बदलाव इन्हें से आएँ।

समाज वही करता आया है, जो उसे उस समय उचित लगा। और चीजें जब बदलती हैं तो कोई एक चीज़ थोड़ी बदलती है। एक साथ अनगिनत चीजें बदलती हैं; इस बदलाव को हम 'प्रगति' तो नहीं कह सकते क्योंकि पहले के तुलना में इंसानों की उम्र घट गई है। अगर 'जीवन' ही प्रगति न मानी जाएँ, तो बाकी जिसे हम प्रगति अगर कहें तो किस काम की ? किसके लिए? ऐसी प्रगति जिसमें जीवन ही न बचे तो उस प्रगति का हम क्या करें ? तो इस बदलाव को हमें स्वीकारना ही होगा। और इसे प्रगति के साथ ही देखना होगा, उस प्रगति के संग, जिसमें जीवन है। हमें 'आज 'के जीवन को सुधारना होगा; जिसमें साहित्य, संस्कृति और समाज भी शामिल हैं और वे भी अपने बदले हुए रूप में। हमें इनमें जीना हैं। क्योंकि हमें उनकी ज्यादा जरूरत हैं।

जिस सदी में हम जी रहे हैं, आगे बढ़ रहे हैं, वो सदी दो भागों में बँट चुकी है। एक देश के दो टुकड़े होने से भी ज्यादा खतरनाक एक चेहरे या जीवन के दो चेहरे और जीवन होना है। जो हम इस आधुनिक दुनिया में देखते हैं। हम दो पर्सनैलिटीज के साथ जी रहे हैं, और इनके साथ ही हमारा साहित्य, हमारी संस्कृति और हमारा समाज भी दो भागों में बँट गया है। स्थिति अब यह है कि अब हम चाहकर भी इन्हें अपने मूल रूप में नहीं ला सकते; न ही भविष्य में इसकी आकांक्षाएँ दिखती हैं। इसलिए हमें भी अब ये कोशिश करनी चाहिए कि हम इनमें सुधार ला सकें, मैं बदलाव की बात नहीं कर रही क्योंकि उसके इस दौर में संभव होने की आकांक्षाएँ कम हैं।

हमारे जीने में, हमारे सोचने में जब सुधार आयेगा तब उनमें भी सुधार दिखने लगेगा। जो कुछ 'अभी' है उससे ही तो साहित्य बनता है। और हम ही वे लोग हैं जो साहित्य का निर्माण करते हैं। संस्कृति भले ही युगों से चलती आई हो, जो संस्कृति हम आज देखते हैं, वो 'आज' की संस्कृति है। जिस समाज को हम देखते हैं, वो 'आज' समाज हैं।
यह आज और अभी काः साहित्य, समाज और संस्कृति हैं। और हम ही इनके निर्माता हमें इन्हें जीना हैं।

१४फ़रवरी२०२५
@TheAdarshVoice
(स्मृतियाँ)

Comments

  1. कृपया कुछ समय निकाल कर अवश्य पढ़े और
    हमसे अपना विचार साझा करे धन्यवाद 🙏

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