मध्यम वर्गीय परिवार के दो बेटे :
मध्यम वर्गीय परिवार के दो बेटे :
दूसरी तरफ वे बेटे होते हैं, जो बचपन से ही अपनी इच्छाओं को सीमित करना सीख जाते हैं। जिनके माता-पिता हर फरमाइश तो पूरी नहीं कर पाते, लेकिन उन्हें जरूरतों की अहमियत समझा देते हैं। ये बच्चे कम में भी खुश रहना सीख जाते हैं, अपने सपनों को वक्त के साथ सहेजकर रखते हैं। और फिर जब ये बड़े होते हैं, खुद कमाने लगते हैं, तो अपनी हर ख्वाहिश को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। उनके लिए जिंदगी सिर्फ जिम्मेदारियों तक सीमित नहीं होती, बल्कि वे अपने हर उस सपने को भी पूरा करते हैं, जिसे कभी बचपन में दबा दिया था।
फर्क बस इतना होता है, पहले वाले अपनी इच्छाओं के लिए माता-पिता पर निर्भर रहते हैं और बाद में सिर्फ जरूरतें पूरी कर पाते हैं। जबकि दूसरे वाले, जो कभी बचपन में अपनी ख्वाहिशों को त्याग देते थे, बड़े होकर अपनी मेहनत से खुद को वह सब देने की कोशिश करते हैं, जो कभी उनके लिए एक सपना था। उनके लिए खुशी सिर्फ अपने लिए नहीं होती, बल्कि अपने माता-पिता को वह सब देने में होती है, जो कभी वे उनके लिए नहीं कर सके थे।
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